वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

हज़रत शहाब उद्दीन उम्र सुह्रवर्दी

 

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप की विलादत बासआदत ५ रजब ५३९ हिज्री में सहरोरद में हुई।आप के वालिद का नाम मुहम्मद बिन अबदुल्लाह था।आप का शिजरा नसब चौदह वासतों से हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ ओ रज़ी अल्लाह तआला अन्ना से जा मिलता है।इबतिदाई तालीम आप ने छुट्टी सदी के मशहूर बुज़ुर्ग हज़रत हुस्न मलिकानी से हासिल की।इस के बाद आप ने बग़दाद में अपने चचा हज़रत अब्बू नजीब अब्दुह लुका हर सुह्रवर्दी रहमअल्लाह अलैहि से दरस हदीस लेना शुरू किया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ज़ाहिरी उलूम की तकमील के बाद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अपने चचा हज़रत अब्बू नजीब अब्दुह लुका हर सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि के दस्त मुबारक पर बैअत फ़रमाई और उन्ही की निगरानी शाहराह सुलूक पर गामज़न हुए। अक़तदाए सुलूक में आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने बहुत सख़्त मुजाहिदे किए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने सालहा साल शब बेदारी में गुज़ारे और काफ़ी अर्सा सयाहत में गुज़ारा और कई हज किए। साहिब मराअलासरार कहते हैं कि जिस क़दर रियाज़त-ओ-मुजाहिदात आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने किए हैं किसी और ने कम ही किए होंगे। तकमील सुलूक के बाद हज़रत अब्बू नजीब सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को ख़िरक़ा ख़िलाफ़त इनायत फ़रमाया।

हज़रत ख़्वाजा शहाब उद्दीन उम्र सुह्रवर्दी रहमअल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि जब मैंने तमाम अकली वनक़ली उलूम पढ़ लिए ओरालम-ए-ज़ाहिरी में भी जो कुछ था वो मैंने पढ़ लिया तो मेरे चचा और मुर्शिद शेख़ हज़रत अब्बू नजीब अब्दुह लुका हर सुह्रवर्दी रहमअल्लाह अलैहि मुझे हुज़ूर ग़ौस-ए-पाक रज़ी अल्लाह अन्ना की बारगाह में लेकर गए और अर्ज़ किया। हुज़ूर मेरे इस बेटे ने तमाम उलूम पढ़ लिए हैं अब फ़ैज़ के लिए आप की बारगाह में लाया हूँ। हज़रत-ए-शैख़ शहाब उद्दीन रज़ी अल्लाह अन्ना फ़रमाते हैं कि हुज़ूर ग़ौस पाक रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अपना दस्त-ए-मुबारक मेरे सीने पर फेरा और सारे उलूम का सफ़ाया होगया।

इस के बाद हुज़ूर ग़ौस पाक रहमतुह अल्लाह अलैहि ने मुझ से चंद सवालात किए कि इन का जवाब दो, मैंने जो कुछ पढ़ा था कुछ भी पास ना रहा लिहाज़ा जवाब ना दे सका। आप मुस्कुरा पड़े, फ़रमाया : परेशान ना हो। तख़्ती पर कुछ लिखना हो तो पहला लिखा हुआ साफ़ करना पड़ता है। । । पहले इलम था अब मार्फ़त लिखेंगे। इस के बाद दुबारा दस्त-ए-अक़्दस रखा तो सीना मार्फ़त के समुंद्रों से मोजज़िन कर दिया ।पस सुह्रवर्दी सिलसिले में ग़ौस बहा-ए-उद्दीन ज़करीया मुल्तानी रहमअल्लाह अलैहि से लेकर क़ियामत तक जिस को हज़रत-ए-शैख़ सहरोरद रहमअल्लाह अलैहि का फ़ैज़ मिलेगा। वो फ़ैज़ दरअसल दस्त-ए-गो सियत-ए-मआब का फ़ैज़ है। जिस वक़्त ग़ौस पाक रहमतुह अल्लाह अलैहि ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को ख़िरक़ा ख़िलाफ़त इनायत फ़रमाया उस वक़्त आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की उम्र २० बरस थी।

हज़रत अब्बू नजीब सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि के विसाल के बाद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि उन के जांनशीन हुए। जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने मुर्शिद की मस्नद फ़ुक़्र पर रौनक अफ़रोज़ हुए तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ज़ात गिरामी से लाखों बंदगान ख़ुदा को फ़ैज़ पहुंचा। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का शहरा ना सिर्फ़ इराक़ बल्कि मिस्र, शाम, हिजाज़, ईरान, कोचक और हिंदू पाकिस्तान तक पहुंच चुका था। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के फ़ैज़ सोहबत से बड़े बड़े औलिया किराम वजूद में आए।

हज़रत बाबा फ़रीद उद्दीन शुक्र गंज रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि जब में बग़दाद पहुंचा तो मैंने हज़रत शहाब उद्दीन सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि की ज़यारत की और आप रहमतुह अल्लाह अलैहि से कई रोज़ फ़ैज़ हासिल करता रहा। इस अर्सा में कोई दिन ऐसा ना था कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़ानक़ाह में बारह हज़ार दीनार से कम जमा हुआ हो लेकिन आप रहमतुह अल्लाह अलैहि उसी रोज़ सब कुछ अल्लाह की राह में सिर्फ़ करदेते और एक हब्बा भी अपने पास ना रखते और फ़रमाते कि अगर में एक हब्बा भी अपने पास रलखों तो लोग मुझे दरवेश ना कहेंगे बल्कि कहेंगे कि ये दरवेश मालदार है।

हज़रत ख़्वाजा गेसूए दराज़ सय्यद मुहम्मद हुसैनी रहमतुह अल्लाह अलैहि अहने मलफ़ूज़ात में फ़रमाते हैं कि एक मर्तबा दरयाए दजला में बहुत शूरू तलातुम हीदा होगया। इस तूफ़ान में बहुत सी बस्तीयां भी वीरान होगईं और बहुत सा जानी नुक़्सान भी हुआ। लोगों ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में आकर फ़र्याद की तो हज़रत शहाब उद्दीन सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने अपने ख़ादिम को बुलाया और कहा ये दर्राह ले जाओ और दजला पर मॉरो और कहो बह अदल उम्र सुह्रवर्दी अपनी असली हालत में लूट जा।

वो ख़ादिम हसब-ए-हुक्म गया और इस करामत का मुशाहिदा करने के लिए एक आलम भी साथ होगया। चुनांचे जैसे ही ख़ादिम ने दर्राह मारा और ये जुमला कहा दजला पीछे हिट गया और अपनी जगह पर जाकर पुरसुकून होगया। जब इस वाक़िया का इलम ख़्वाजा अब्बू अललीस समरकंदी को मालूम हुआ तो उन्हों ने समरकंद से हज़रत शहाब उद्दीन उम्र सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि को ख़त लिखा कि मर्दाने ख़ुदा ने करामात को पोशीदा रखा है, ये ज़ाहिर करना क्या मानी रखता है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ये ख़त पढ़ कर एक तरफ़ रख दिया और फ़रमाया कि इस बात को आम आदमी क्या समझेगा।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि यक्म मुहर्रम ६३२हिज्री को इस दार फ़ानी से रुख़स्त हुए। उस वक़्त आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की उम्र ९३ बरस थी। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का मज़ार शरीफ़ बग़दाद शरीफ़ में वाक़्य है।